भूम्याकारिका
भूम्याकारिका
भारत के उच्चवच एवं भौतिक स्वरूप में प्रयाप्त विषमता मिलती हैं एक अनुमान के अनुसार देश के समूचे क्षेत्रफल का 10.6 प्रतिशत भाग पर्वतों, 18.5 प्रतिशत पहाडियों,27.7 प्रतिशत पठारांे के एवं शेष 43.2 प्रतिशत मैैदानो के रूप में पाया जाता हैं उत्तर में हिमच्छादित शिखरों, विस्तृत घाटी हिमानियों, गहरे खड्डों, लम्बायित घाटियों,गरजते जल प्रपातों,घनी वनस्पति एवं सांस्कृतिक विविधताओं से सम्पन्न हिमालय की उत्तुंग श्रेणियों स्थित हैं इसके दक्षिण सिंधु,गंगा, ब्रह्म पुत्र एवं उसकी सहायक नदियॉ क्षेत्र फैला हुआ हैं जिसमें वर्षा ऋितु के बृहताकार एवं प्रभुत जल राशि को छोडकर वर्ष भर नदियॉ मन्थर गति से प्रवाहित होती हैं चौडी घाटियॉ, नदी वप्र विसर्प गोखुर झील नदी मार्ग परिवर्तन इस जलोढ मैदान के भूदृश्य की प्रमुख विशेषतायंें है। पश्चिम में स्थित राजस्थान मैदान वनस्पति विहीन बालुकास्तूप से परिपूर्ण ऐसा विशान रेतीला मरूस्थलीय क्षेत्र है। जहॉ नदि के नाम पर केवल अल्पकालिक सरितायें देखी जा सकती हैं जिसमें विरली ही समुदृ तक पहुॅच पाती है। द़िक्षण की तरफ विशाल मैदान का संपर्क संश्लिष्ट पठारी भाग से होता है। जिसकी सतह अत्यधिक अनाच्छादित हैै।
भू-आकृतिक प्रदेश:-
स्तरण एवं विवर्तनिक इतिहास उच्चावचीय विशेषताओं एवं अपरदन प्रक्रमों के आधार पर भारत को चार बृहत 20 मध्य स्तरीय एवं 58 लघुस्तरीय भू-प्रदेशो में विभाजित किया जा सकता हैैं
एस0पी0 चटर्जी 1964 गजटियर आफ इंडिया के अनुसार चार बृहत स्तरीय प्रदेश है।
(1) उत्तरी पर्वत
(2) बृह्त मैदान
(3) प्रायद्वीपीय उच्च भूमि
(4) भारतीय तट एवं द्वीप
(1) उत्तरी पर्वत:-
इसकी स्थिति देश के उत्तरी सीमान्त के सहारे पश्चिम में पाकिस्थान की पूर्वी सीमा से लकर पूर्व में म्यामार की सीमा तक लगभग 2500 किमी0 की लम्बाई, 240से 320 किमी0 चौडाई एवं लगभग 5 लाख वर्ग किमी0 के क्षेत्र पर विस्तृत पाई जाती है। इस क्षेत्र में हिमालय की मुख्य अक्ष चापाकार में पश्चिम से पूरब की दिशा में सिंधु एवे बृहमापुत्र नदियों के बीच में फैली हैं जिसके अन्तर्गत जम्मू-कश्मीर, हिमांचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश के भाग समाहित है। इसकी शाखा नगालैण्ड, मणिपुर एवं मिजोरम से होती हुई भारत-म्यांमार सीमा के सहारे उत्तर- दक्षिण दिशा में फैली हुई है। हिम के आगर के रूप में हिमालय विश्व के नवीन एवं सबसे ऊॅचे मोडदार पर्वतक्रम को प्रदर्शित करता है। जिसकी सागर तल से ऊॅचाई 8000 मीटर से भी अधिक पाई जाती है। यह कई समान्तर पर्वत श्रेणियों से मिलकर बना हैै।
(अ) हिमाद्री (महान हिमालय)
(ब) हिमांचल (लघु हिमालय )
(स) शिवालिक
(द) तिब्बत हिमालय
(अ) हिमाद्री (महान हिमालय):-
यह सबसेे उत्तर की श्रेणि है। इन्हें हिमाद्रि, महाहिमालय, मुख्य हिमालय अथवा बर्फीले हिमालय भी कहा जाता है। ये सिंन्धु नदी के मोड के पास से ब्रह्ाम पुत्र नदी के मोड तक 2400 किलोमीटर तक टेढी रेखा की भॉति फैले हुए हैं। इसकी चौडाई 25 किलोमीटर और औसत ऊचाई 6000मीटर है। इस पर्वत श्रेणियों में 40 ऐसी चोटियों है। जिसकी ऊचाई 7000 मीटर से अधिक है। और लगभग 273 ऐसी चोटियॉ हैै। जिनकी ऊचाई 6000 मीटर से अधिक है। हिमालय की सबसें ऊची चोटि इसी भाग में पायी जाती हैै।
इसकि मुख्य चोटियॉ - माउण्ट एवरेस्ट , नन्दादेवी, कंचनजंगा, मकालू, अन्नापूर्णा, मनसालू, धौलागिरि,
(ब) हिमांचल (लघु हिमालय ):-
यह श्रेणी महानहिमालय के दक्षिण में उसी के समान्तर फैली हुई हैै। यह 80 से 100 किलोमीटर चौडी है। इस श्रेणि की औसत ऊॅचाई 1828 से 3000 मीटर और अधिकत्म ऊॅचाई 4500 मीटर है। यहॉ 1000 मीटर की गहराई पर बहती है। शीत ऋितु में 3-4 महीने हिम गिरता है। किन्तु ग्रीष्म ऋितु में यें भाग स्वास्थ्यवर्द्वक रहते हैै। इसकी प्रमंख श्रेणियों में मुख्य धौलाधर, पीरपंलजाल महाभारत लेख चूरिया और मसूरी मुंख्य है।
(स) शिवालिक:-
यह उपयुक्त दोनो श्रेणियों के दक्षिण में फैली है। इन्हें बाह्ा हिमालय भी कहते हैैं । यह श्रेणी पोटवार बेसिन के दक्षिण से प्रारम्भ होकर पूर्व की ओर कोसी नदी तक फैला हैं। उत्तर-पश्चिम से पूर्व में यह लगभग 2000 किलोमीटर लम्बी एंव 40 से 50 किमी चौडी है। इस श्रेणी की औसत ऊचाई 1200 मीटर आस पास है। पूर्व की ओर तिस्ता एवं रायडाक नदियों के निकट ये लुप्त हो जाती हैै। यह हिमालय का सबसे नवीन भाग हैैं। इसको लघु हिमालय से अलग करने वाली घाटियों को पश्चिम में दून और पूर्व द्वार कहते है। देहरादून और हरिद्वार ऐसे ही मैदान है।
(द) तिब्बत हिमालय:-
यह महान् हिमालय के पीछे तिब्बत के दक्षिण भाग में स्थित है। सन् 1906 में स्वेप हेडेन ने इस श्रेणी की खोज की थी अपने मध्य में यह 225 किलोमीटर तथा पूर्व और पश्चिम की ओर किनारों पर 40 किलोमीटर चौडी है। जिसकी आयु 7 से 60 करोड वर्ष की आंकी गयी है।
हिमालय का प्रदेशिक वर्गीकरण:-
सिडनी बुर्राड नामक भूवैज्ञानिक ने हिमालय पर्वत का वर्गीकरण चार खण्डों में किया है-
1ण् पंजाब हिमालय:-
यह सिन्धु नदी से लगाकर सतलज नदी तक 562 किलोमीटर लंबाई में फैले हैं। इनका क्षेत्रफल लगभग 45,000 वर्ग किमी है। सतलज के पश्चिम की ओर इसकी ऊंचाई कर होती जाती है। पंजाब हिमालय की मुख्य चोटियां टाटाकुटी और ब्रùासकल हैं तथा मुख्य दर्रे पीरपंजाल, छोटागली, नुरयूर, चोरगली, जामीर, बनिहाल, गुलाबघर, जोजिला, बुर्जिल आदि हैं।
2ण् कुमायूॅ हिमालय:-
इसका विस्तार सतलज नदी से काली नदी तक 320 किलोमीटर की लंबाई में है। इसका क्षेत्रफल लगभग 38,000 वर्ग किलोमीटर है। इस श्रेणी में उत्तराखंण्ड राज्य में अल्मोडा, गढवाल तथा नैनीताल जिले स्थित हैं। ऐसा अनुमान किया जाता है कि प्रचीनकाल में इस प्रदेश में 360 झीले थीं, उन्हीं के सूख जाने से यहां कुछ उपजाऊ भाग बन गये हैं। इस भाग की मुख्य ऊंची चोटियां बद्रीनाथ(7,040 मीटर), केदारनाथ(6,831 मीटर), त्रिशूल(6,707 मीटर), माना (7,158 मीटर),गंगोत्री(6,508 मीटर) आदि हैं।
3ण् नेपाल हिमालय:-
यह 800 किलोमीटर के विस्तार में काली नदी और तिस्ता नदी के बीच में फैला हैं। इनका क्षेत्रफल लगभग 1,61,800 वर्ग किमी है। इसी श्रेणी को सिक्किम में सिक्किम हिमालय; पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग हिमालय और भूटान में भूटान हिमालय कहते हैं। इनकी औसत ऊंचाई 6,250 मीटर है। इस भाग में भारत ही सबसे ऊंची चोटीयां अन्नपूर्णा, धौलागिरी, कंचनजंगा, मकालू और एवरेस्ट स्थित हैं।
4ण् असम हिमालय:-
तिस्ता नदी से ब्रùपुत्र नदी तक यह 750 किलोमीटर की लंबाई में फैले हैं। इसका क्षेत्रफल 67,500 वर्ग किलोमीटर है। इस श्रेणी का ढाल दक्षिणवर्ती मैदान की ओर बडा तेज है, किन्तु उत्तर-पश्चिम की ओर क्रमशः धीमा होता गया है। इस भाग की मुख्य चोटियां कुलाकांगडी, चुमलहारी, काबरू, जांग सांगला और पौहुनी हैं।
विशाल मैदान:-
भारत का विशाल मैदान उत्तर के उत्तरी पर्वतों( हिमालय) और दक्षिण की प्रायद्वीपीय उच्च भूमि के मध्य एक संक्रमण क्षेत्र के रूप में स्थित है। यह एक अधिवर्धित मैदान है जिसका निर्माण सिन्धु, गंगा एवं ब्रùपुत्र तथा उनकी सहायक नदियों के जलोढ़ जमावों से हुआ है। इसका विस्तार पश्चिम में रावी और सतलुज के तट से पूर्व में गंगा के मुहाने पर लगभग 2400 किलोमीटर की लंबाई, 150 से 500 किलोमीटर की चौड़ाई और 750000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर फैला है। असम में इसकी चौडाई लगभग 90 से 100 किलोमीटर, राजमहल पहाडियों के समीप 160 किलोमीटर, बिहार में 200 किलोमीटर, इलाहाबाद के समीप 280 किलोमीटर और पंजाब-राजस्थान में 500 किलोमीटर पाई जाती है। इसकी औसत ऊंचाई 150 मीटर है। जो गंगा के मुहाने के पार ज्वार-स्तर से लगभग 300 मीटर(गिरिपद क्षेत्र) के बीच पाई जाती है। इसका ढाल अत्यंत मन्द (लगभग 13 सेंटीमीटर/1 किलोमीटर ) पाया जाता है। दक्षिण-पश्चिम में यह मैदान थार के मरूस्थल क्षेत्र में समाविष्ट हो जाता है। यमुना के दाहिने तट के सहारे स्थित दिल्ली कटक का एक नीचा जल विभाजक सतलुज मैदान का गंगा मैदान से पृथ्थक करता है।
विशाल मैदान की उत्पत्ति हिमालय और प्रायद्वीप क्षेत्र की नदियों द्वारा लाये गये अवसादों के जमाव से हुई है। रेत, चिकनी मिट्टी, दुमट और गाद से परिपूर्ण इन जमावों की मोटाई काफी अधिक पाई जाती है।
ओल्डहम ने जलोढक की गहराई का अनुमान 4000-6000 मीटर के बीच लगाया है। बुर्राई ने हिमालय के समीप एक भ्रंश का उल्लेख किया है जिसमें अवपात 32 किलोमीटर पाया जाता है। ग्लेनी ने जलोढक की मोटाई का अनुमान यह गहराई लगभग 1300-1400 मीटर है जो दक्षिण की तरफ उत्तरोत्तर घटती जाती है।
विशाल मैदान की उत्पत्ति:-
समांगी स्थलाकृति एवं सरल उच्चावच के बावजूद विशाल मैदान की उत्पत्ति के रहस्य को अभी तक पूरी तरह सुलझाया नहीं जा सका है। उद्वेतक प्रश्न जलोढक की अपरिमित मोटाई, गर्त की प्रकृति, निर्माण विधि, भूमिगत शैज संस्तर एवं भौमिकीय संरचना से संबंधित हैं। यहॉ कुछ प्रचलित मतों का सारांश प्रस्तुत किया गया है जिससे इन रहस्यों के निराकरण में मदद मिलती है।
1ण् अग्रगर्त का अवसादन- प्रसिद्व आस्ट्रयाई भू- वैज्ञानिक एडवर्ड स्वस के अनुसार प्रायद्वीप के कठोर सुदृढ भूखंड द्वारा बाधा उत्तपन्न किये जाने के कारण हिमालय की उच्च भूपृष्ट तरंग के सम्मुख एक अग्रगर्त का निर्मण हुआ यह अग्रगर्त एक बृहत अभिनति की तरह था एवं अपने तल की विषमता के कारण एक समभिनति -एक विशाल अभिनति जिसमें कई छोटी अपनतियॉ एवं अभिनतियॉ पाई जाती हैं । यह नितल कठोर एवं रवेदार शिलाओं पर टिका है।
2ण् भं्रश घाटी का परिपूरण - कर्नल एस0 जी0 बुरार्ड के अनुसार हिमालय की उत्तपत्ति के समय दो समान्तर भ्रंशो के मध्य के भाग के धॅसाव से एक भ्रंश घाटी का निर्माण हुआ। यह नदियों द्वारा हिमालय क्षेत्र से लााए जाने वाले अपरदन से भर दी गयी जिससे विशाल मैदान की उत्पत्ति हुई
3ण् सगर का प्रतिसरण - व्लैफोर्ड के अनुसार आदिनूतन काल में प्राय़द्वीप भारत अफ्रीका से जुडा हुआ था। उन दिनों एक सागर पूरब में असम घाटी से इरावती नदी तक एवं दूसरा पश्चिम में बलूचिस्थान से लद्दाख तक विस्तृत था अदिनूतन काल के अंतिम भाग में पश्चिम सागर की भुजायें पंजाब तक फैली थी। मध्यनूतन काल में हिमालय के उत्थान और पुनर्युवनिय हिमालय सरिताओं द्वारा अवसादों के धीरे-धीरे जमाव से यं सागर पीछे खिसकने लगे। लम्बी अवधि के बाद ये खाडियॉ भर गयी जिससे विशाल मैदान अस्तित्व में आया।
4ण् टेथीज सागर का अवशिष्टांश - शिवालिक के उत्थान के उपरान्त तेथीस का अवशिष्ट भाग एक बडी द्रोणी के रूप में बचा रहा जो पूरब में बंगाल की खाडी और पश्चिम में अरब सागर से जुडा हुआ है।
विंशाल मैदान का विभाजन -जलोढ की विशेषताओं धरातलीय अपवाह वाहिकाओं और ़क्षेत्रीय विशेषकों के अधार पर विशाल मैदान को कई लघु इकाइयों में विभाजित किया जा सकता है-
भाबर मैदान:-
यह शिवालिक के गिरिपद क्षेत्र में पश्चिम में सिंधु से पूरब में तिस्ता के बीच फैला हुआ यह सामान्तया 8 से 16 किमी0 चौडी हिमालय नदियों द्वारा अचानक ढाल भंग होने के कारण अग्र क्षेत्र में किया गया है कंकड और बजरी के तामावों से निर्मित मेखला है। बजरी के संस्तर बहुधा नदी घाटी के ढाल के समान्तर पाये जाते हैं।
तराई मैदान:-
भाबर के दक्षिण में 15-30 किलोमीटर चौडा दलदली क्षेत्र फैला हुआ है जिसे तराई कहते हैं। यहॉ लुप्त नदियॉ पुनः सतह पर प्रकट हो जाती हैं। ढाल के मंद और अपवाह के त्रुटिपूर्ण होने के कारण इनका जल धरातल पर फैल जाता है जिससे यह क्षेत्र दलदल में परिणत हो गया है। उत्तर प्रदेश और पंजाब में तराई वनों को साफ कर गन्ना, चावल एवं गेहॅू की अच्छी फसलें उगाई जाती हैं।
बांगड या भागड मैदान:-
यह नदी की बाढ सीमा से ऊपर पुरानी जलोढक से निर्मित उच्च भूमि (जलोढ चबूतरा) है। यहॉ की कॉॅप मिट्टी का रंग गहरा(पीत रक्ताभ भूरा ) है जिसमें संग्रथनों एवं अशुद्ध कैल्सियम कार्बोनेट की ग्रंथिकाओं या कंकड की बहुलता पाई जाती है। शुष्क क्षेत्रों मं इसमें लवणीय एवं क्षारीय उत्फुल्लन देखे जाते हैं जिन्हें ’रेह’ कहा जाता है एवं जिससे शोरा प्राप्त होता है। बांगड में चिकनी मिट्टी की प्रधानता है जो यत्र-तत्र दुमट एवं रेतीली दुमट में परिणत हो गई है।
खादर मैदान:-
नवीन कांप द्वारा निर्मित नदियों के बाढ मैदान को खादर या बेट (पंजाब) कहते हैं। प्रतिवर्ष बाढों के दौरान रेत की नई परत के जमा होने से इसकी उर्वरता बनी रहती है। यहॉ की जलोढक हल्के रंग की है जिसमें चूनेदार पदार्थों की कमी पाई जाती है। इसमें मुख्यतः बालू, रेत, पंक एवं चिकनी मिट्टी के जमाव पाये जाते हैं। पश्चिमी बंगाल, बिहार एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश में खादर का अधिक विस्तार पाया जाता है। इनका निर्माण ऊपरी अभिनूतन काल से नूतन काल के दौरान हुआ है।
डेल्टा मैदान:-
यह खादर मैदान का ही बढा हुआ भाग है। इसका विस्तार निचली गंगा घाटी के लगभग 1.86 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर पाया जाता है। इसमें मुख्यतः पुराना पंक, नया पंक एवं दलदली सम्मिलित हैं। यहॉ उच्च भूमि को चार तथा दलदली क्षेत्र को ’बिल’ कहते हैं। गंगा का डेल्टा एक सक्रिय डेल्टा है जिसका बंगाल की खाडी की ओर सतत विस्तार हो रहा है।
प्रदेशिक विशेषताओं के आधार पर ग्रगा के मैदान को निम्न चार मध्य स्तरीय प्रदेशों में विभाजित किया जाता है-
पण् राजस्थान मैदान
पपण् पंजाब-हरियाण मैदान
पपपण् गंगा मैदान(इसके तीन भाग हैं-)
अद्ध ऊपरी गंगा मैदान
बद्ध मध्य गंगा मैदान
दद्ध निचला गंगा मैदान
पअण् ब्रùपुत्र मैदान
प्रायद्वीपीय उच्च भूमि:-
लगभग 16 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर फैला प्रायद्वीपीय भू-भाग देश का सबसे बडा भू-आकृतिक प्रदेश है। 600-900 मीटर की सामान्य ऊॅचाई वाला यह क्षेत्र एक अनियमित त्रिभुज का निर्माण करता है जिसका आधार दिल्ली कटक से राजमहल पहाडियों तक और शीर्ष कन्याकुमारी के पास स्थित है। इसकी उत्तरी-पश्चिमी सीमा अरावली पहाडियों द्वारा और उत्तरी सीमा बुन्देलखंड उच्च भूमि, कैमूर एवं राजमहल पहाडियों द्वारा बनाई जाती है। उत्तरी अक्षांश के दक्षिण सहयाद्रि एवं पूर्वी घाट क्रमशः इसकी पश्चिमी एवं पूर्वी सीमाओं को निर्धारित करते हैं तो दक्षिण में नीलगिरि पहाडियों के समीप एक दूसरे से मिल जाते हैं।
प्रायद्वीपीय उच्च भूमि की उत्पत्ति:-
प्रायद्वीप भू-पृष्ठ एक दृढ भूखंड को प्रदर्शित करता है जो प्रिकैम्ब्रियन काल से ही पर्वतीकरण या पर्वत निर्माणकारी हलचलों से अप्रभावित रहा है। यह भूपृष्ठ की उन प्राचीनतम शिलाओं से बना कठार क्षेत्र है जिनका सर्वाधिक संदलन एवं कायांतरण हुआ है। खेदार शिलाओं के इस निम्न तल पर बाद के अवसाद एवं विस्तृत लावा प्रवाह स्थित हैं। प्राचीन काल से ही इस क्षेत्र पर अपरदन के कारक सक्रिय रहे हैं जिससे पठार का विस्तृत क्षेत्र समप्राय मैदान की अवस्था में पहुॅच रहा है। यद्यपि प्राचीन पर्वतों के मूल ढॅढे जा सकते हैं परंतु वर्तमान ऊॅचाइयॉ अनाच्छादन की विभिन्न अवस्थओं में बचे अपरदन अवशेष हैं।
प्रायद्वीपीय उच्च भूमि का विभाजन:-
भू- आकृतिक विशेषताओं के आधार पर प्रायद्वीपीय उच्च भूमि की कई उपविभागों में बांटा जा सकता है-
1ण् पूर्वी राजस्थान-महाभारत पठार:-
पूर्वी राजस्थान-महाभारत पठार ( पू0 एवं उत्तर ) पूर्वी राजस्थान, उत्तरी-पश्चिमी मध्य प्रदेश एवं गुजरात के एक छोटे भाग(बनासकांठा एवं साबरकांठा जनपदों के भाग) के लगभग 1,67,872 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अधिकृत किए हुए हैं।
इस प्रदेश की स्थलाकृति में पर्याप्त भिन्नता मिलती है जिसमें समप्रायीकरण, संवलन, अन्तर्भेदन एवं विरूपण के संकेत मिलते हैं। भू-आकृतिक दृष्टि से इसे दो इकाइयों में बॉटा गया है-
पण् अरावली श्रेणी
पपण् पूर्वी मैदान
2ण् मालवा का पठार:-
मालवा का पठार (उत्तर एवं पू0) अपनी 530 किलोमीटर की लंबाई और 390 किलोमीटर की चौडाई के साथ प्रायद्वीप के लगभग 150,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर विस्तृत है। इसकी उत्तरी सीमा अरावली, दक्षिणी सीमा विन्ध्य श्रेणी और पूर्वी सीमा बुन्देलखण्ड पठार द्वारा निर्धारित की जाती है।
3ण् बुन्देलखंड उच्च भूमि:-
बुन्देलखंड उच्च भूमि ( उत्तर एवं पू0) उत्तर में यमुना नदी, दक्षिण में विन्ध्य पठार, उत्तर-पश्चिम में चम्बल नदी तथा दक्षिण-पूर्व में पन्ना-अजयगढ श्रेणियों द्वारा सीमांकित किया गया है। इसमें उत्तर प्रदेश के पॉच जनपदों (जालौन, झांसी, ललितपुर, हमीरपुर एवं बांदा) तथा मध्य प्रदेश के चार जनपदों (दतिया, टीकमगढ, छतरपुर एवं पन्ना) का 54,560 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र सम्मिलित है। यह मुख्यतः रवेदार आग्नेय और कायांतरित शिलाओं से निर्मित है।
4ण् छोटा नागपुर पठार:-
छोटा नागपुर पठार( उत्तर एवं पू0), जिसका कुल क्षेत्रफल 87,239 वर्ग किलोमीटर है, मुख्यतः झारखंड के पलामू, हजारीबाग, गिरिडीह, संथाल परगना, धनबाद, रांची, लोहरदग्गा, गुमला ण्वं सिंहभूम जनपदों एवं पश्चिम बंगाल के पुरूलिया जनपद को समाहित किए हुए हैं। यह आर्कियन ग्रेनाइट एवं नाइस शिलाओं और धारवाड चट्टानों के खंडों से बना है।
5ण् महानदी बेसिन:-
महानदी बेसिन या छत्तीसगढ मैदान ( उत्तर एवं पू0 ) का विस्तार रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग एवं रायगढ जनपदों के लगभग 72,940 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर पाया जाता है। यह क्षेत्र मुख्यतः कुडप्पा अवसादीय शिलाओं से ढका है जो विषम विन्यस्त तौर पर आर्कियन ग्रेनाइट और नाइस पर टिकी हुई है।
6ण् सहयाद्रि:-
सहयाद्रि या पश्चिमी घाट का फैलाव पश्चिमी सागर तट के समान्तर लगभग 1600 किलोमीटर की लंबाई में उत्तर ताप्ती के मुहाने से दक्षिण में कुमारी अंतरीप तक पाया जाता है। सहयाद्रि प्रायद्वीप के वास्तविक जलविभाजक का निर्माण करते हैं। गोदावरी, कावेरी, कृष्णा एवं ताम्रपर्णी आदि प्रायद्वीप की मुख्य एवं इनकी सहायक नदियॉ इन्हीं पहाडियों से निकलकर पूरब में बंगाल की खाडी की ओर प्रवाहित होती हैं।
7ण् विन्ध्या श्रेणी:-
विन्ध्या श्रेणी का विस्तार लगभग 1050 किलोमीटर की लंबाई में गुजरात के जोबात ( उत्तर पू0 ) से लेकर बिहार के सासाराम तक फैला है। इसकी सामान्य ऊचाई मीटर तक पाई जाती है। नर्मदा,सोन भ्रशं के उत्तर में स्थित यह श्रेणी महत्वपूर्ण जलविभाजक के साथ-साथ दक्कन पठार की उत्तरी सीमा का निर्माण करती है।
8ण् सतपुडा श्रेणी:-
विन्ध्याचल श्रेणी के समान्तर उत्तर मे ंनर्मदा एवं दक्षिण में पाती नदियों की घाटियों के बीच सतपुडा श्रेणी का विस्तार पश्चिम में रतनपुर से पूरब में अमरकंटक तक पाया जाता है। लगभग 900 किलोमीटर की लंबाई और 770 मीटर औसत ऊंचाई के साथ इसकी सामान्य दिशा पूर्व उत्तर-पूर्व से पश्चिम दक्षिण पश्चिम की तरफ पाई जाती है। संरचनात्मक दृष्टि से सतपूडा श्रेणी के तीन भाग हैं-
पण् राजपिल्ला पहाडियॉ
पपण् महादेव पहाडियॉ
पपपण् अमरकंटक की सर्वाेच्च पहाडियॉ
भारतीय समुद्र तट एवं द्वीप
प्रायद्वीपीय उच्चभूमि कच्छ से उडीसा तक विभिन्न चौडाई वाले तटीय मैदानो द्वारा घिरी हुई है। परन्तु पश्चिम एवं पूर्वी तटीय मैदानो के बीच स्पष्ट अन्तर देखा जा सकता है। गुजरात के अपवाह को छोडकर पश्चिमी तट सॅकरे जलोढ जमाव युक्त पहाडी भूभागों द्वारा विकीर्णित और अधिक आर्द्र जलवायु वाला है। दक्षिण को छोडकर जहॉ लेगुनों के साथ मैदान चौडे है। कच्छ से लेकर कुमारी अन्तरीप तक इसकी कुल लम्बाई 1800 किमी0 और औसत चौडाई 10-15 किमी0 पाई जाती है ं
भारतीय तटीय मैदानों का विभाजन:-
भू-आकृतिक तौर पर भारतीय तटीय मैदानों को निम्न तीन विस्तृत विभागों में बॉटा जा सकता है।
(अ) गुजरात तटीय मैदान:-
गुजरात तटीय मैदान ( उत्तर से एवं पू0) गुजरात राज्य (बनासकांठा और साबरकांठा जनपदों को छोडकर), दमन, दीव, दादरा एवं नगर हवेली के केन्द्र शासित प्रदेशों के लगभग 1,79,320 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अधिकृत किए हुए हैं।
(ब) पश्चिम तटीय मैदान:-
सहयाद्रि एवं अरब सागर के मध्य स्थित पश्चिम तटीय मैदान( उ0 एवं पू0) 64,264 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र(उत्तर-दक्षिण लंबाई 1400 किलोमीटर, पूरब-पश्चिम चौडाई 10-80 किलोमीटर) पर फैला है।
(स) पूर्वी तटीय मैदान:-
पूर्वी तटीय मैदान(उ0 एवं पूर्व ) उडीसा, आन्ध्र प्रदेश एवं तमिलनाडु के तटों के सहारे लगभग 1,02,882 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अधिकृत किया हुए है।
भारतीय द्वीप:-
भारत में कुल 1000 से अधिक द्वीप हैं जो बंगाल की खाडी और अरब सागर में स्थित है इसमें जहॉ बंगाल की खाडी के द्वीप म्यांमार की अराका नयोमा की विस्तृत निमज्जित श्रेणी के शिखर हैं। वहीं अरब सागर के द्वीप प्रबल भित्तियों के जमाव हैं जो ज्वालामुखी द्वीपों पर संग्रहित हैं। इसके अतिरिक्त गंगा के मुहाने, मन्नर की खाडी एवं पूर्वी और पश्चिमी तटों के सहारे डेल्टा जमाव से निर्मित कई अपतटीय द्वीप स्थित है। ब्रùपुत्र नदी में स्थित माजुली एशिया का बृहत्तम ताजा जल वाला द्वीप है।
पण् अरब सागर के द्वीप:-
इसके अंतर्गत लक्षद्वीप समूह के 36 द्वीप (उ0 एवं पू0) सम्मिलित हैं जिसका कुल क्षेत्रफल 108.78 वर्ग किलोमीटर एवं जनसंख्या 60,595 है। इसकी तट से निकटतम दूरी 108.78 किलोमीटर है। इसमें सबसे दक्षिण में मिनिकाय स्थित है। मध्यवर्ती भाग के द्वीपों को सामूहिक तौर पर लक्कादीव नाम दिया जाता है।
पपण् बंगाल की खाडी के द्वीप:-
बंगाल की खाडी के द्वीपों (उ0 एवं पू0) का विस्तार चापाकार आकृति में लगभग 590 किमी0 की लंबाई एवं 58 किमी0 की चौडाई में पाया जाता है। इसका कुल क्षेत्रफल 8,326.85 वर्ग किमी0 एवं जनसंख्या 3,56,265 है। अंडमान व निकोबार समूह में कुल 572 छोटे-बडे द्वीप हैं। अंडमान समूह में कुल 550 द्वीप सम्मिलित हैं। निकोबार समूह में कुल 19 द्वीप सम्मिलित हैं।
पपपण् तटीय द्वीप:-
अंडमान व निकोबार समूह के द्वीपों के अतिरिक्त भारत के पश्चिमी तट, पूर्वी तट, गंगा डेल्टा और मन्नार की खाडी में कई द्वीप स्थित हैं। पश्चिम तट के द्वीपों में पिरम, भैसला द्वीव, करूनभव, खडिया बेट, एलीफेण्टा, श्री हरि कोटा, परिकुड, न्यूमूर एवं सागर द्वीप प्रमुख हैं। कच्छ के 42 द्वीप मैरीन नेशनल पार्क के भाग हैं।
भारत के उच्चवच एवं भौतिक स्वरूप में प्रयाप्त विषमता मिलती हैं एक अनुमान के अनुसार देश के समूचे क्षेत्रफल का 10.6 प्रतिशत भाग पर्वतों, 18.5 प्रतिशत पहाडियों,27.7 प्रतिशत पठारांे के एवं शेष 43.2 प्रतिशत मैैदानो के रूप में पाया जाता हैं उत्तर में हिमच्छादित शिखरों, विस्तृत घाटी हिमानियों, गहरे खड्डों, लम्बायित घाटियों,गरजते जल प्रपातों,घनी वनस्पति एवं सांस्कृतिक विविधताओं से सम्पन्न हिमालय की उत्तुंग श्रेणियों स्थित हैं इसके दक्षिण सिंधु,गंगा, ब्रह्म पुत्र एवं उसकी सहायक नदियॉ क्षेत्र फैला हुआ हैं जिसमें वर्षा ऋितु के बृहताकार एवं प्रभुत जल राशि को छोडकर वर्ष भर नदियॉ मन्थर गति से प्रवाहित होती हैं चौडी घाटियॉ, नदी वप्र विसर्प गोखुर झील नदी मार्ग परिवर्तन इस जलोढ मैदान के भूदृश्य की प्रमुख विशेषतायंें है। पश्चिम में स्थित राजस्थान मैदान वनस्पति विहीन बालुकास्तूप से परिपूर्ण ऐसा विशान रेतीला मरूस्थलीय क्षेत्र है। जहॉ नदि के नाम पर केवल अल्पकालिक सरितायें देखी जा सकती हैं जिसमें विरली ही समुदृ तक पहुॅच पाती है। द़िक्षण की तरफ विशाल मैदान का संपर्क संश्लिष्ट पठारी भाग से होता है। जिसकी सतह अत्यधिक अनाच्छादित हैै।
भू-आकृतिक प्रदेश:-
स्तरण एवं विवर्तनिक इतिहास उच्चावचीय विशेषताओं एवं अपरदन प्रक्रमों के आधार पर भारत को चार बृहत 20 मध्य स्तरीय एवं 58 लघुस्तरीय भू-प्रदेशो में विभाजित किया जा सकता हैैं
एस0पी0 चटर्जी 1964 गजटियर आफ इंडिया के अनुसार चार बृहत स्तरीय प्रदेश है।
(1) उत्तरी पर्वत
(2) बृह्त मैदान
(3) प्रायद्वीपीय उच्च भूमि
(4) भारतीय तट एवं द्वीप
(1) उत्तरी पर्वत:-
इसकी स्थिति देश के उत्तरी सीमान्त के सहारे पश्चिम में पाकिस्थान की पूर्वी सीमा से लकर पूर्व में म्यामार की सीमा तक लगभग 2500 किमी0 की लम्बाई, 240से 320 किमी0 चौडाई एवं लगभग 5 लाख वर्ग किमी0 के क्षेत्र पर विस्तृत पाई जाती है। इस क्षेत्र में हिमालय की मुख्य अक्ष चापाकार में पश्चिम से पूरब की दिशा में सिंधु एवे बृहमापुत्र नदियों के बीच में फैली हैं जिसके अन्तर्गत जम्मू-कश्मीर, हिमांचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश के भाग समाहित है। इसकी शाखा नगालैण्ड, मणिपुर एवं मिजोरम से होती हुई भारत-म्यांमार सीमा के सहारे उत्तर- दक्षिण दिशा में फैली हुई है। हिम के आगर के रूप में हिमालय विश्व के नवीन एवं सबसे ऊॅचे मोडदार पर्वतक्रम को प्रदर्शित करता है। जिसकी सागर तल से ऊॅचाई 8000 मीटर से भी अधिक पाई जाती है। यह कई समान्तर पर्वत श्रेणियों से मिलकर बना हैै।
(अ) हिमाद्री (महान हिमालय)
(ब) हिमांचल (लघु हिमालय )
(स) शिवालिक
(द) तिब्बत हिमालय
(अ) हिमाद्री (महान हिमालय):-
यह सबसेे उत्तर की श्रेणि है। इन्हें हिमाद्रि, महाहिमालय, मुख्य हिमालय अथवा बर्फीले हिमालय भी कहा जाता है। ये सिंन्धु नदी के मोड के पास से ब्रह्ाम पुत्र नदी के मोड तक 2400 किलोमीटर तक टेढी रेखा की भॉति फैले हुए हैं। इसकी चौडाई 25 किलोमीटर और औसत ऊचाई 6000मीटर है। इस पर्वत श्रेणियों में 40 ऐसी चोटियों है। जिसकी ऊचाई 7000 मीटर से अधिक है। और लगभग 273 ऐसी चोटियॉ हैै। जिनकी ऊचाई 6000 मीटर से अधिक है। हिमालय की सबसें ऊची चोटि इसी भाग में पायी जाती हैै।
इसकि मुख्य चोटियॉ - माउण्ट एवरेस्ट , नन्दादेवी, कंचनजंगा, मकालू, अन्नापूर्णा, मनसालू, धौलागिरि,
(ब) हिमांचल (लघु हिमालय ):-
यह श्रेणी महानहिमालय के दक्षिण में उसी के समान्तर फैली हुई हैै। यह 80 से 100 किलोमीटर चौडी है। इस श्रेणि की औसत ऊॅचाई 1828 से 3000 मीटर और अधिकत्म ऊॅचाई 4500 मीटर है। यहॉ 1000 मीटर की गहराई पर बहती है। शीत ऋितु में 3-4 महीने हिम गिरता है। किन्तु ग्रीष्म ऋितु में यें भाग स्वास्थ्यवर्द्वक रहते हैै। इसकी प्रमंख श्रेणियों में मुख्य धौलाधर, पीरपंलजाल महाभारत लेख चूरिया और मसूरी मुंख्य है।
(स) शिवालिक:-
यह उपयुक्त दोनो श्रेणियों के दक्षिण में फैली है। इन्हें बाह्ा हिमालय भी कहते हैैं । यह श्रेणी पोटवार बेसिन के दक्षिण से प्रारम्भ होकर पूर्व की ओर कोसी नदी तक फैला हैं। उत्तर-पश्चिम से पूर्व में यह लगभग 2000 किलोमीटर लम्बी एंव 40 से 50 किमी चौडी है। इस श्रेणी की औसत ऊचाई 1200 मीटर आस पास है। पूर्व की ओर तिस्ता एवं रायडाक नदियों के निकट ये लुप्त हो जाती हैै। यह हिमालय का सबसे नवीन भाग हैैं। इसको लघु हिमालय से अलग करने वाली घाटियों को पश्चिम में दून और पूर्व द्वार कहते है। देहरादून और हरिद्वार ऐसे ही मैदान है।
(द) तिब्बत हिमालय:-
यह महान् हिमालय के पीछे तिब्बत के दक्षिण भाग में स्थित है। सन् 1906 में स्वेप हेडेन ने इस श्रेणी की खोज की थी अपने मध्य में यह 225 किलोमीटर तथा पूर्व और पश्चिम की ओर किनारों पर 40 किलोमीटर चौडी है। जिसकी आयु 7 से 60 करोड वर्ष की आंकी गयी है।
हिमालय का प्रदेशिक वर्गीकरण:-
सिडनी बुर्राड नामक भूवैज्ञानिक ने हिमालय पर्वत का वर्गीकरण चार खण्डों में किया है-
1ण् पंजाब हिमालय:-
यह सिन्धु नदी से लगाकर सतलज नदी तक 562 किलोमीटर लंबाई में फैले हैं। इनका क्षेत्रफल लगभग 45,000 वर्ग किमी है। सतलज के पश्चिम की ओर इसकी ऊंचाई कर होती जाती है। पंजाब हिमालय की मुख्य चोटियां टाटाकुटी और ब्रùासकल हैं तथा मुख्य दर्रे पीरपंजाल, छोटागली, नुरयूर, चोरगली, जामीर, बनिहाल, गुलाबघर, जोजिला, बुर्जिल आदि हैं।
2ण् कुमायूॅ हिमालय:-
इसका विस्तार सतलज नदी से काली नदी तक 320 किलोमीटर की लंबाई में है। इसका क्षेत्रफल लगभग 38,000 वर्ग किलोमीटर है। इस श्रेणी में उत्तराखंण्ड राज्य में अल्मोडा, गढवाल तथा नैनीताल जिले स्थित हैं। ऐसा अनुमान किया जाता है कि प्रचीनकाल में इस प्रदेश में 360 झीले थीं, उन्हीं के सूख जाने से यहां कुछ उपजाऊ भाग बन गये हैं। इस भाग की मुख्य ऊंची चोटियां बद्रीनाथ(7,040 मीटर), केदारनाथ(6,831 मीटर), त्रिशूल(6,707 मीटर), माना (7,158 मीटर),गंगोत्री(6,508 मीटर) आदि हैं।
3ण् नेपाल हिमालय:-
यह 800 किलोमीटर के विस्तार में काली नदी और तिस्ता नदी के बीच में फैला हैं। इनका क्षेत्रफल लगभग 1,61,800 वर्ग किमी है। इसी श्रेणी को सिक्किम में सिक्किम हिमालय; पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग हिमालय और भूटान में भूटान हिमालय कहते हैं। इनकी औसत ऊंचाई 6,250 मीटर है। इस भाग में भारत ही सबसे ऊंची चोटीयां अन्नपूर्णा, धौलागिरी, कंचनजंगा, मकालू और एवरेस्ट स्थित हैं।
4ण् असम हिमालय:-
तिस्ता नदी से ब्रùपुत्र नदी तक यह 750 किलोमीटर की लंबाई में फैले हैं। इसका क्षेत्रफल 67,500 वर्ग किलोमीटर है। इस श्रेणी का ढाल दक्षिणवर्ती मैदान की ओर बडा तेज है, किन्तु उत्तर-पश्चिम की ओर क्रमशः धीमा होता गया है। इस भाग की मुख्य चोटियां कुलाकांगडी, चुमलहारी, काबरू, जांग सांगला और पौहुनी हैं।
विशाल मैदान:-
भारत का विशाल मैदान उत्तर के उत्तरी पर्वतों( हिमालय) और दक्षिण की प्रायद्वीपीय उच्च भूमि के मध्य एक संक्रमण क्षेत्र के रूप में स्थित है। यह एक अधिवर्धित मैदान है जिसका निर्माण सिन्धु, गंगा एवं ब्रùपुत्र तथा उनकी सहायक नदियों के जलोढ़ जमावों से हुआ है। इसका विस्तार पश्चिम में रावी और सतलुज के तट से पूर्व में गंगा के मुहाने पर लगभग 2400 किलोमीटर की लंबाई, 150 से 500 किलोमीटर की चौड़ाई और 750000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर फैला है। असम में इसकी चौडाई लगभग 90 से 100 किलोमीटर, राजमहल पहाडियों के समीप 160 किलोमीटर, बिहार में 200 किलोमीटर, इलाहाबाद के समीप 280 किलोमीटर और पंजाब-राजस्थान में 500 किलोमीटर पाई जाती है। इसकी औसत ऊंचाई 150 मीटर है। जो गंगा के मुहाने के पार ज्वार-स्तर से लगभग 300 मीटर(गिरिपद क्षेत्र) के बीच पाई जाती है। इसका ढाल अत्यंत मन्द (लगभग 13 सेंटीमीटर/1 किलोमीटर ) पाया जाता है। दक्षिण-पश्चिम में यह मैदान थार के मरूस्थल क्षेत्र में समाविष्ट हो जाता है। यमुना के दाहिने तट के सहारे स्थित दिल्ली कटक का एक नीचा जल विभाजक सतलुज मैदान का गंगा मैदान से पृथ्थक करता है।
विशाल मैदान की उत्पत्ति हिमालय और प्रायद्वीप क्षेत्र की नदियों द्वारा लाये गये अवसादों के जमाव से हुई है। रेत, चिकनी मिट्टी, दुमट और गाद से परिपूर्ण इन जमावों की मोटाई काफी अधिक पाई जाती है।
ओल्डहम ने जलोढक की गहराई का अनुमान 4000-6000 मीटर के बीच लगाया है। बुर्राई ने हिमालय के समीप एक भ्रंश का उल्लेख किया है जिसमें अवपात 32 किलोमीटर पाया जाता है। ग्लेनी ने जलोढक की मोटाई का अनुमान यह गहराई लगभग 1300-1400 मीटर है जो दक्षिण की तरफ उत्तरोत्तर घटती जाती है।
विशाल मैदान की उत्पत्ति:-
समांगी स्थलाकृति एवं सरल उच्चावच के बावजूद विशाल मैदान की उत्पत्ति के रहस्य को अभी तक पूरी तरह सुलझाया नहीं जा सका है। उद्वेतक प्रश्न जलोढक की अपरिमित मोटाई, गर्त की प्रकृति, निर्माण विधि, भूमिगत शैज संस्तर एवं भौमिकीय संरचना से संबंधित हैं। यहॉ कुछ प्रचलित मतों का सारांश प्रस्तुत किया गया है जिससे इन रहस्यों के निराकरण में मदद मिलती है।
1ण् अग्रगर्त का अवसादन- प्रसिद्व आस्ट्रयाई भू- वैज्ञानिक एडवर्ड स्वस के अनुसार प्रायद्वीप के कठोर सुदृढ भूखंड द्वारा बाधा उत्तपन्न किये जाने के कारण हिमालय की उच्च भूपृष्ट तरंग के सम्मुख एक अग्रगर्त का निर्मण हुआ यह अग्रगर्त एक बृहत अभिनति की तरह था एवं अपने तल की विषमता के कारण एक समभिनति -एक विशाल अभिनति जिसमें कई छोटी अपनतियॉ एवं अभिनतियॉ पाई जाती हैं । यह नितल कठोर एवं रवेदार शिलाओं पर टिका है।
2ण् भं्रश घाटी का परिपूरण - कर्नल एस0 जी0 बुरार्ड के अनुसार हिमालय की उत्तपत्ति के समय दो समान्तर भ्रंशो के मध्य के भाग के धॅसाव से एक भ्रंश घाटी का निर्माण हुआ। यह नदियों द्वारा हिमालय क्षेत्र से लााए जाने वाले अपरदन से भर दी गयी जिससे विशाल मैदान की उत्पत्ति हुई
3ण् सगर का प्रतिसरण - व्लैफोर्ड के अनुसार आदिनूतन काल में प्राय़द्वीप भारत अफ्रीका से जुडा हुआ था। उन दिनों एक सागर पूरब में असम घाटी से इरावती नदी तक एवं दूसरा पश्चिम में बलूचिस्थान से लद्दाख तक विस्तृत था अदिनूतन काल के अंतिम भाग में पश्चिम सागर की भुजायें पंजाब तक फैली थी। मध्यनूतन काल में हिमालय के उत्थान और पुनर्युवनिय हिमालय सरिताओं द्वारा अवसादों के धीरे-धीरे जमाव से यं सागर पीछे खिसकने लगे। लम्बी अवधि के बाद ये खाडियॉ भर गयी जिससे विशाल मैदान अस्तित्व में आया।
4ण् टेथीज सागर का अवशिष्टांश - शिवालिक के उत्थान के उपरान्त तेथीस का अवशिष्ट भाग एक बडी द्रोणी के रूप में बचा रहा जो पूरब में बंगाल की खाडी और पश्चिम में अरब सागर से जुडा हुआ है।
विंशाल मैदान का विभाजन -जलोढ की विशेषताओं धरातलीय अपवाह वाहिकाओं और ़क्षेत्रीय विशेषकों के अधार पर विशाल मैदान को कई लघु इकाइयों में विभाजित किया जा सकता है-
भाबर मैदान:-
यह शिवालिक के गिरिपद क्षेत्र में पश्चिम में सिंधु से पूरब में तिस्ता के बीच फैला हुआ यह सामान्तया 8 से 16 किमी0 चौडी हिमालय नदियों द्वारा अचानक ढाल भंग होने के कारण अग्र क्षेत्र में किया गया है कंकड और बजरी के तामावों से निर्मित मेखला है। बजरी के संस्तर बहुधा नदी घाटी के ढाल के समान्तर पाये जाते हैं।
तराई मैदान:-
भाबर के दक्षिण में 15-30 किलोमीटर चौडा दलदली क्षेत्र फैला हुआ है जिसे तराई कहते हैं। यहॉ लुप्त नदियॉ पुनः सतह पर प्रकट हो जाती हैं। ढाल के मंद और अपवाह के त्रुटिपूर्ण होने के कारण इनका जल धरातल पर फैल जाता है जिससे यह क्षेत्र दलदल में परिणत हो गया है। उत्तर प्रदेश और पंजाब में तराई वनों को साफ कर गन्ना, चावल एवं गेहॅू की अच्छी फसलें उगाई जाती हैं।
बांगड या भागड मैदान:-
यह नदी की बाढ सीमा से ऊपर पुरानी जलोढक से निर्मित उच्च भूमि (जलोढ चबूतरा) है। यहॉ की कॉॅप मिट्टी का रंग गहरा(पीत रक्ताभ भूरा ) है जिसमें संग्रथनों एवं अशुद्ध कैल्सियम कार्बोनेट की ग्रंथिकाओं या कंकड की बहुलता पाई जाती है। शुष्क क्षेत्रों मं इसमें लवणीय एवं क्षारीय उत्फुल्लन देखे जाते हैं जिन्हें ’रेह’ कहा जाता है एवं जिससे शोरा प्राप्त होता है। बांगड में चिकनी मिट्टी की प्रधानता है जो यत्र-तत्र दुमट एवं रेतीली दुमट में परिणत हो गई है।
खादर मैदान:-
नवीन कांप द्वारा निर्मित नदियों के बाढ मैदान को खादर या बेट (पंजाब) कहते हैं। प्रतिवर्ष बाढों के दौरान रेत की नई परत के जमा होने से इसकी उर्वरता बनी रहती है। यहॉ की जलोढक हल्के रंग की है जिसमें चूनेदार पदार्थों की कमी पाई जाती है। इसमें मुख्यतः बालू, रेत, पंक एवं चिकनी मिट्टी के जमाव पाये जाते हैं। पश्चिमी बंगाल, बिहार एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश में खादर का अधिक विस्तार पाया जाता है। इनका निर्माण ऊपरी अभिनूतन काल से नूतन काल के दौरान हुआ है।
डेल्टा मैदान:-
यह खादर मैदान का ही बढा हुआ भाग है। इसका विस्तार निचली गंगा घाटी के लगभग 1.86 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर पाया जाता है। इसमें मुख्यतः पुराना पंक, नया पंक एवं दलदली सम्मिलित हैं। यहॉ उच्च भूमि को चार तथा दलदली क्षेत्र को ’बिल’ कहते हैं। गंगा का डेल्टा एक सक्रिय डेल्टा है जिसका बंगाल की खाडी की ओर सतत विस्तार हो रहा है।
प्रदेशिक विशेषताओं के आधार पर ग्रगा के मैदान को निम्न चार मध्य स्तरीय प्रदेशों में विभाजित किया जाता है-
पण् राजस्थान मैदान
पपण् पंजाब-हरियाण मैदान
पपपण् गंगा मैदान(इसके तीन भाग हैं-)
अद्ध ऊपरी गंगा मैदान
बद्ध मध्य गंगा मैदान
दद्ध निचला गंगा मैदान
पअण् ब्रùपुत्र मैदान
प्रायद्वीपीय उच्च भूमि:-
लगभग 16 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर फैला प्रायद्वीपीय भू-भाग देश का सबसे बडा भू-आकृतिक प्रदेश है। 600-900 मीटर की सामान्य ऊॅचाई वाला यह क्षेत्र एक अनियमित त्रिभुज का निर्माण करता है जिसका आधार दिल्ली कटक से राजमहल पहाडियों तक और शीर्ष कन्याकुमारी के पास स्थित है। इसकी उत्तरी-पश्चिमी सीमा अरावली पहाडियों द्वारा और उत्तरी सीमा बुन्देलखंड उच्च भूमि, कैमूर एवं राजमहल पहाडियों द्वारा बनाई जाती है। उत्तरी अक्षांश के दक्षिण सहयाद्रि एवं पूर्वी घाट क्रमशः इसकी पश्चिमी एवं पूर्वी सीमाओं को निर्धारित करते हैं तो दक्षिण में नीलगिरि पहाडियों के समीप एक दूसरे से मिल जाते हैं।
प्रायद्वीपीय उच्च भूमि की उत्पत्ति:-
प्रायद्वीप भू-पृष्ठ एक दृढ भूखंड को प्रदर्शित करता है जो प्रिकैम्ब्रियन काल से ही पर्वतीकरण या पर्वत निर्माणकारी हलचलों से अप्रभावित रहा है। यह भूपृष्ठ की उन प्राचीनतम शिलाओं से बना कठार क्षेत्र है जिनका सर्वाधिक संदलन एवं कायांतरण हुआ है। खेदार शिलाओं के इस निम्न तल पर बाद के अवसाद एवं विस्तृत लावा प्रवाह स्थित हैं। प्राचीन काल से ही इस क्षेत्र पर अपरदन के कारक सक्रिय रहे हैं जिससे पठार का विस्तृत क्षेत्र समप्राय मैदान की अवस्था में पहुॅच रहा है। यद्यपि प्राचीन पर्वतों के मूल ढॅढे जा सकते हैं परंतु वर्तमान ऊॅचाइयॉ अनाच्छादन की विभिन्न अवस्थओं में बचे अपरदन अवशेष हैं।
प्रायद्वीपीय उच्च भूमि का विभाजन:-
भू- आकृतिक विशेषताओं के आधार पर प्रायद्वीपीय उच्च भूमि की कई उपविभागों में बांटा जा सकता है-
1ण् पूर्वी राजस्थान-महाभारत पठार:-
पूर्वी राजस्थान-महाभारत पठार ( पू0 एवं उत्तर ) पूर्वी राजस्थान, उत्तरी-पश्चिमी मध्य प्रदेश एवं गुजरात के एक छोटे भाग(बनासकांठा एवं साबरकांठा जनपदों के भाग) के लगभग 1,67,872 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अधिकृत किए हुए हैं।
इस प्रदेश की स्थलाकृति में पर्याप्त भिन्नता मिलती है जिसमें समप्रायीकरण, संवलन, अन्तर्भेदन एवं विरूपण के संकेत मिलते हैं। भू-आकृतिक दृष्टि से इसे दो इकाइयों में बॉटा गया है-
पण् अरावली श्रेणी
पपण् पूर्वी मैदान
2ण् मालवा का पठार:-
मालवा का पठार (उत्तर एवं पू0) अपनी 530 किलोमीटर की लंबाई और 390 किलोमीटर की चौडाई के साथ प्रायद्वीप के लगभग 150,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर विस्तृत है। इसकी उत्तरी सीमा अरावली, दक्षिणी सीमा विन्ध्य श्रेणी और पूर्वी सीमा बुन्देलखण्ड पठार द्वारा निर्धारित की जाती है।
3ण् बुन्देलखंड उच्च भूमि:-
बुन्देलखंड उच्च भूमि ( उत्तर एवं पू0) उत्तर में यमुना नदी, दक्षिण में विन्ध्य पठार, उत्तर-पश्चिम में चम्बल नदी तथा दक्षिण-पूर्व में पन्ना-अजयगढ श्रेणियों द्वारा सीमांकित किया गया है। इसमें उत्तर प्रदेश के पॉच जनपदों (जालौन, झांसी, ललितपुर, हमीरपुर एवं बांदा) तथा मध्य प्रदेश के चार जनपदों (दतिया, टीकमगढ, छतरपुर एवं पन्ना) का 54,560 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र सम्मिलित है। यह मुख्यतः रवेदार आग्नेय और कायांतरित शिलाओं से निर्मित है।
4ण् छोटा नागपुर पठार:-
छोटा नागपुर पठार( उत्तर एवं पू0), जिसका कुल क्षेत्रफल 87,239 वर्ग किलोमीटर है, मुख्यतः झारखंड के पलामू, हजारीबाग, गिरिडीह, संथाल परगना, धनबाद, रांची, लोहरदग्गा, गुमला ण्वं सिंहभूम जनपदों एवं पश्चिम बंगाल के पुरूलिया जनपद को समाहित किए हुए हैं। यह आर्कियन ग्रेनाइट एवं नाइस शिलाओं और धारवाड चट्टानों के खंडों से बना है।
5ण् महानदी बेसिन:-
महानदी बेसिन या छत्तीसगढ मैदान ( उत्तर एवं पू0 ) का विस्तार रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग एवं रायगढ जनपदों के लगभग 72,940 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर पाया जाता है। यह क्षेत्र मुख्यतः कुडप्पा अवसादीय शिलाओं से ढका है जो विषम विन्यस्त तौर पर आर्कियन ग्रेनाइट और नाइस पर टिकी हुई है।
6ण् सहयाद्रि:-
सहयाद्रि या पश्चिमी घाट का फैलाव पश्चिमी सागर तट के समान्तर लगभग 1600 किलोमीटर की लंबाई में उत्तर ताप्ती के मुहाने से दक्षिण में कुमारी अंतरीप तक पाया जाता है। सहयाद्रि प्रायद्वीप के वास्तविक जलविभाजक का निर्माण करते हैं। गोदावरी, कावेरी, कृष्णा एवं ताम्रपर्णी आदि प्रायद्वीप की मुख्य एवं इनकी सहायक नदियॉ इन्हीं पहाडियों से निकलकर पूरब में बंगाल की खाडी की ओर प्रवाहित होती हैं।
7ण् विन्ध्या श्रेणी:-
विन्ध्या श्रेणी का विस्तार लगभग 1050 किलोमीटर की लंबाई में गुजरात के जोबात ( उत्तर पू0 ) से लेकर बिहार के सासाराम तक फैला है। इसकी सामान्य ऊचाई मीटर तक पाई जाती है। नर्मदा,सोन भ्रशं के उत्तर में स्थित यह श्रेणी महत्वपूर्ण जलविभाजक के साथ-साथ दक्कन पठार की उत्तरी सीमा का निर्माण करती है।
8ण् सतपुडा श्रेणी:-
विन्ध्याचल श्रेणी के समान्तर उत्तर मे ंनर्मदा एवं दक्षिण में पाती नदियों की घाटियों के बीच सतपुडा श्रेणी का विस्तार पश्चिम में रतनपुर से पूरब में अमरकंटक तक पाया जाता है। लगभग 900 किलोमीटर की लंबाई और 770 मीटर औसत ऊंचाई के साथ इसकी सामान्य दिशा पूर्व उत्तर-पूर्व से पश्चिम दक्षिण पश्चिम की तरफ पाई जाती है। संरचनात्मक दृष्टि से सतपूडा श्रेणी के तीन भाग हैं-
पण् राजपिल्ला पहाडियॉ
पपण् महादेव पहाडियॉ
पपपण् अमरकंटक की सर्वाेच्च पहाडियॉ
भारतीय समुद्र तट एवं द्वीप
प्रायद्वीपीय उच्चभूमि कच्छ से उडीसा तक विभिन्न चौडाई वाले तटीय मैदानो द्वारा घिरी हुई है। परन्तु पश्चिम एवं पूर्वी तटीय मैदानो के बीच स्पष्ट अन्तर देखा जा सकता है। गुजरात के अपवाह को छोडकर पश्चिमी तट सॅकरे जलोढ जमाव युक्त पहाडी भूभागों द्वारा विकीर्णित और अधिक आर्द्र जलवायु वाला है। दक्षिण को छोडकर जहॉ लेगुनों के साथ मैदान चौडे है। कच्छ से लेकर कुमारी अन्तरीप तक इसकी कुल लम्बाई 1800 किमी0 और औसत चौडाई 10-15 किमी0 पाई जाती है ं
भारतीय तटीय मैदानों का विभाजन:-
भू-आकृतिक तौर पर भारतीय तटीय मैदानों को निम्न तीन विस्तृत विभागों में बॉटा जा सकता है।
(अ) गुजरात तटीय मैदान:-
गुजरात तटीय मैदान ( उत्तर से एवं पू0) गुजरात राज्य (बनासकांठा और साबरकांठा जनपदों को छोडकर), दमन, दीव, दादरा एवं नगर हवेली के केन्द्र शासित प्रदेशों के लगभग 1,79,320 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अधिकृत किए हुए हैं।
(ब) पश्चिम तटीय मैदान:-
सहयाद्रि एवं अरब सागर के मध्य स्थित पश्चिम तटीय मैदान( उ0 एवं पू0) 64,264 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र(उत्तर-दक्षिण लंबाई 1400 किलोमीटर, पूरब-पश्चिम चौडाई 10-80 किलोमीटर) पर फैला है।
(स) पूर्वी तटीय मैदान:-
पूर्वी तटीय मैदान(उ0 एवं पूर्व ) उडीसा, आन्ध्र प्रदेश एवं तमिलनाडु के तटों के सहारे लगभग 1,02,882 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अधिकृत किया हुए है।
भारतीय द्वीप:-
भारत में कुल 1000 से अधिक द्वीप हैं जो बंगाल की खाडी और अरब सागर में स्थित है इसमें जहॉ बंगाल की खाडी के द्वीप म्यांमार की अराका नयोमा की विस्तृत निमज्जित श्रेणी के शिखर हैं। वहीं अरब सागर के द्वीप प्रबल भित्तियों के जमाव हैं जो ज्वालामुखी द्वीपों पर संग्रहित हैं। इसके अतिरिक्त गंगा के मुहाने, मन्नर की खाडी एवं पूर्वी और पश्चिमी तटों के सहारे डेल्टा जमाव से निर्मित कई अपतटीय द्वीप स्थित है। ब्रùपुत्र नदी में स्थित माजुली एशिया का बृहत्तम ताजा जल वाला द्वीप है।
पण् अरब सागर के द्वीप:-
इसके अंतर्गत लक्षद्वीप समूह के 36 द्वीप (उ0 एवं पू0) सम्मिलित हैं जिसका कुल क्षेत्रफल 108.78 वर्ग किलोमीटर एवं जनसंख्या 60,595 है। इसकी तट से निकटतम दूरी 108.78 किलोमीटर है। इसमें सबसे दक्षिण में मिनिकाय स्थित है। मध्यवर्ती भाग के द्वीपों को सामूहिक तौर पर लक्कादीव नाम दिया जाता है।
पपण् बंगाल की खाडी के द्वीप:-
बंगाल की खाडी के द्वीपों (उ0 एवं पू0) का विस्तार चापाकार आकृति में लगभग 590 किमी0 की लंबाई एवं 58 किमी0 की चौडाई में पाया जाता है। इसका कुल क्षेत्रफल 8,326.85 वर्ग किमी0 एवं जनसंख्या 3,56,265 है। अंडमान व निकोबार समूह में कुल 572 छोटे-बडे द्वीप हैं। अंडमान समूह में कुल 550 द्वीप सम्मिलित हैं। निकोबार समूह में कुल 19 द्वीप सम्मिलित हैं।
पपपण् तटीय द्वीप:-
अंडमान व निकोबार समूह के द्वीपों के अतिरिक्त भारत के पश्चिमी तट, पूर्वी तट, गंगा डेल्टा और मन्नार की खाडी में कई द्वीप स्थित हैं। पश्चिम तट के द्वीपों में पिरम, भैसला द्वीव, करूनभव, खडिया बेट, एलीफेण्टा, श्री हरि कोटा, परिकुड, न्यूमूर एवं सागर द्वीप प्रमुख हैं। कच्छ के 42 द्वीप मैरीन नेशनल पार्क के भाग हैं।
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